आर्यभट्ट(476-550) प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ और ज्योतिषविद् भी थे। उन्होंने आर्यभट्ट ग्रंथ की रचना की थी, जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन भी है। इसी ग्रंथ में उन्होंने अपना जन्म-स्थान कुसुमपुर और जन्म काल शक संवत् 398 लिखा हुआ है। बिहार वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था, आर्यभट्ट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह लगभग सिद्ध हो चुका है।
कुछ मान्यता के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। ईन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के पास कुसुमपुर में स्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की।
जन्म दिसम्बर 476 अश्मक, महाराष्ट्र, भारत
मृत्यु दिसम्बर 550 (उम्र 74)
आवास भारत
राष्ट्रीयता भारतीय
क्षेत्र ज्योतिष्विद प्राचीन गणितज्ञ, , खगोलज्ञ
संस्थान नालंदा विश्वविद्यालय
प्रसिद्धि आर्यभट्ट सिद्धांत,आर्यभटीय, π का अन्वेषण
जीवन परिचय
आर्यभट्ट का जन्म वर्ष का आर्यभटीय में दिया हुआ है उनके जन्म के वास्तविक स्थान के बारे में विवाद है उनका जन्म नर्मदा और गोदावरी के मध्य के क्षेत्र पैदा हुए मानते है जिसे अश्मक के नाम से जाना जाता था,मध्यभारत में महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश शामिल है। कुसुमपुर के पहचान पटली पुत्र के रूप में की गई है।
ताजा अध्ययन के अनुसार आर्यभट्ट , केरल के चाम्रवत्तम ( 10उत्तर51, 75पूर्व45) के निवासी थे। अध्ययन के अनुसार अस्मका एक जैन प्रदेश भी था जो कि, श्रवणबेलगोल के चारों तरफ फैला हुआ था ,और यहाँ के पत्थरो के खम्बों की वजह से इसका नाम अस्मका पड़ा। चाम्रवत्तम भी इसी जैन बस्ती का हिस्सा था, इसका प्रमाण भारतापुझा नदी जिसका नाम जैनों के पौराणिक राजा भारता के नाम पर रखा गया है, आर्यभट्ट ने भी युगों को परिभाषित करते वक्त राजा भारता का जिक्र भी किया है- दसगीतिका के पांचवें छंद में राजा भारत के समय तक बीत चुके काल का वर्णन आता भी है। उन दिनों में कुसुमपुरा में एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था, जहाँ जैनों का निर्णायक का प्रभाव था और आर्यभट्ट का काम इस प्रकार कुसुमपुरा पहुँच सका और उन्हें भी पसंद भी किया गया।
उच्च शिक्षा के लिए आर्यभट्ट कुसुमपुर गए और कुछ समय तक वहां अध्ययन किया। गुप्त साम्राज्य के अंतिम समय में आर्यभट्ट रहे जिसे भारत का स्वर्णिम युग के रूप में जाना जाता है।
आर्यभट्ट की कृतियाँ
उनके द्वारा एक और ग्रंथ लिखा था- 'आर्यभट सिद्धांत'। उसके केवल ३४ श्लोक ही उपलब्ध है। उन्होंने आर्यभटीय नामक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ लिखा, जिसमें वर्गमूल, घनमूल, समान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का भी वर्णन किया हुआ है। आर्यभट ने अपने इस छोटे से ग्रन्थ में अपने से पूर्ववर्ती तथा पश्चाद्वर्ती देश के तथा विदेश के सिद्धान्तों के लिये भी क्रान्तिकारी अवधारणाएँ उपस्थित कराई गई है
आर्यभट्ट का तीसरा ग्रन्थ जो अरबी अनुवाद के रूप में अस्तित्व में है, अलन्त्फ़ या अलनन्फ़ है, आर्यभट के एक अनुवाद के रूप में दावा प्रस्तुत करता है, परन्तु इसका संस्कृत नाम पता नहीं है। संभवतः 9 वी सदी के अभिलेखन में, यह फारसी के विद्वान और भारतीय इतिहासकार अबू रेहान अल-बिरूनी द्वारा उल्लेखित किया गया है।
विरासत
भारतीय के खगोलीय परम्परा में आर्यभट्ट के कार्य का बड़ा योगदान था और अनुवाद के माध्यम से इन्होंने कई पड़ोसी संस्कृतियों को प आकर्षित किया। इस्लामी स्वर्ण काल इसका अरबी अनुवाद विशेष प्रभावशाली सिद्ध हुआ था। उनके कुछ परिणामों को अल-ख्वारिज्मी द्वारा उद्धृत भी किया गया है और 10वीं सदी के अरबी विद्वान अल-बिरूनी द्वारा उन्हें सन्दर्भित किया गया है, जिन्होंने अपने वर्णन में लिखा है कि आर्यभट्ट के अनुसरण करने वाले मानते थे कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है।
आर्यभट्ट की खगोलीय गणना की विधियां भी बहुत अधिक प्रभावशाली थी। त्रिकोणमितिक तालिकाओं के साथ, वे इस्लामी दुनिया में व्यापक रूप से उपयोग की जाती थी। और अनेक अरबी खगोलीय तालिकाओं की गणना के लिए उपयोग की जाती थी। विशेष रूप से, 11वीं सदी के अरबी स्पेन वैज्ञानिक अल-झर्काली के कार्यों में पाई जाने वाली खगोलीय तालिकाओं का लैटिन में तोलेडो की तालिकाओं के रूप में 12 वीं सदी अनुवाद किया गया और ये यूरोप में सदियों तक सर्वाधिक सूक्ष्म पंचांग के रूप में इस्तेमाल में रही।
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