महादेवी वर्मा जीवन परिचय ।Biography of Mahadevi Verma
महादेवी वर्मा (24 मार्च 1904 - 11 सितंबर 1949) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं।आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है।कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है।महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की।न केवल उनका काव्य बल्कि उनके सामाजसुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना जागृत की। उन्होंने अपने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन-जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित अध्ययन किया है। संस्मरण महादेवी वर्मा के संस्मरणों का संग्रह है। इसका प्रकाशन 1983 में हुआ। इसमें पथ के साथी से लिए गए 11 संस्मरण हैं।
जन्म 26 मार्च 1907 फ़र्रुख़ाबाद, संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, ब्रिटिश राज
व्यवसाय उपन्यासकार, कवयित्री, लघुकथा लेखिका
राष्ट्रीयता भारतीय
उच्च शिक्षा संस्कृत, इलाहाबाद विश्वविद्यालय से
जीवनसाथी डॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा
महादेवी वर्मा ने खड़ी बोली हिन्दी की कविता में कोमल शब्दावली का विकास किया है। जबकि वह बृजभाषा में ही संभव मानी जाती थी। इलिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के कोमल-कोमल शब्दों को चुनकर-चुनकर हिन्दी का रंग जमाया। संगीत की जानकार होने के साथ उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अन्तिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उनका बाल-विवाह हुआ परन्तु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। महादेवी वर्मा का नाम भारत के साहित्य आकाश में तारे की भांति ज्योतिर्मय है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूज्यनीय बनी रहीं। वर्ष 2007उनकी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया गया। भारतीय साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से इन्हें 27 अप्रैल 1982 को सम्मानित किया गया था।
आखिर कौन है? कालीन भैया
जीवन परिचय
जन्म एवं परिवार
महादेवी का जन्म फ़र्रुख़ाबाद उत्तर प्रदेश,26 मार्च 1907 को भारत में हुआ। लगभग 200 वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद पहली बार उनके परिवार में पुत्री का जन्म हुआ था। उनके बाबा बाबू बाँके विहारी जी ख़ुशी से झूम उठे और महादेवी को घर की देवी मानते हुए पुत्री का नाम महादेवी रखा। उनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी माता का नाम हेमरानी देवी था। हेमरानी देवी बड़ी धार्मिक, कर्मनिष्ठ, भावुक एवं शाकाहारी स्त्री थीं। विवाह के समय अपने साथ सिंहासनासीन भगवान की मूर्ति भी लायी थीं वे प्रतिदिन कई घंटे तक पूजा-पाठ तथा गीता ,रामायण एवं विनय पत्रिका का पारायण करती रहती थीं और साथ ही संगीत में भी उनकी अधिक रुचि थी। इसके बिल्कुल विपरीत उनके पिता गोविन्द प्रसाद वर्मा सुन्दर, संगीत प्रेमी, नास्तिक,विद्वान, शिकार करने एवं घूमने के शौकीन, मांसाहारी तथा हँसमुख प्रवृत्ति के व्यक्ति थे।
शिक्षा
महादेवी जी प्रारम्भिक शिक्षा इंदौर में मिशन स्कूल से प्रारम्भ हुई साथ ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा अध्यापकों द्वारा घर पर ही दी जाती रही। बीच में विवाह जैसी बाधा पड़ जाने के कारण कुछ दिन शिक्षा स्थगित रही। विवाहोपरान्त महादेवी जी ने 1919 में क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया और कॉलेज के छात्रावास में रहने लगीं। 1921 में महादेवी जी ने आठवीं कक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया। यहीं पर उन्होंने अपने काव्य जीवन की शुरुआत की। वे सात वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखने लगी थीं और १९२५ तक जब उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की, वे एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं। कालेज में सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ उनकी घनिष्ठ मित्रता हो गई। 1932में जब उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम॰ए॰ पास किया महादेवी की विरह वेदना में परम तत्व की अभिव्यक्ति दिखाई देती है।तब तक उनके दो कविता संग्रह नीहार तथा रश्मि प्रकाशित हो चुके थे।संस्मरण महादेवी वर्मा की रचना है।
विवाहित जीवन
उनके बाबा श्री बाँके विहारी ने इनका विवाह सन्1916 में बरेली के पास नबाव गंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया, जो उस समय दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। श्री वर्मा इण्टर करके लखनऊ मेडिकल कॉलेज में बोर्डिंग हाउस में रहने लगे। महादेवी जी उस समय क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद के छात्रावास में थीं। श्रीमती महादेवी वर्मा को विवाहित जीवन से विरक्ति थी। कारण कुछ भी रहा हो पर श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कोई वैमनस्य नहीं था। सामान्य स्त्री-पुरुष के रूप में उनके सम्बंध मधुर ही रहे। दोनों में बीच पत्राचार भी होता था। यदा-कदा श्री वर्मा इलाहाबाद में उनसे मिलने भी आते थे। श्री वर्मा ने महादेवी जी के कहने पर भी दूसरा विवाह नहीं किया। महादेवी जी का जीवन तो एक संन्यासिनी का जीवन था। उन्होंने जीवन भर श्वेत वस्त्र पहना, तख्त पर सोईं और कभी शीशा नहीं देखा। सन् 1966 में पति की मृत्यु के बाद वे स्थाई रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं।
प्रश्नोत्तरी
लेबल: Biography
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]
<< मुख्यपृष्ठ