स्वामी विवेकानंद जीवन परिचय ।Biography of Swami Vivekananda
मृत्यु 4 जुलाई 1902 (उम्र 39)बेलूर मठ, बंगाल रियासत, ब्रिटिश राज
( पश्चिम बंगाल में)
धर्म हिन्दू
गुरु रामकृष्ण परमहंस
साहित्यिक कार्य राज योग (पुस्तक)
राष्ट्रीयता भारतीय
कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली कायस्थकुटुंब में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके थे। गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे उन्होंने सीखा कि सारे जीवो मे स्वयं परमात्मा का ही अस्तित्व हैं; इसलिए मानव जाति अथेअथ जो मनुष्य एक-दूसरे जरूरत मंदो की करता है या सेवा भाव द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के प्रिय शिष्य थे। गुरु रामकृष्ण की मृत्यु के पश्चात विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म सभा1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए गए। विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन भी किया। विवेकानंद को भारत में देशभक्त संन्यासी के रूप में माना जाता है और उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। महान व्यक्तित्व के थे स्वामीजी। आदर्श पुरुष भी थे। वे देश-विदेश में एक विशेष छाप छोड़ गए। उनके अवतरण दिवस(जन्मदिन) को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
जीवन परिचय
शिक्षा
प्रारंभिक शिक्षा सन् 1871 में, आठ साल की उम्र में, नरेंद्रनाथ ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया । सन्1877 में उनका परिवार रायपुर चला गया। सन्1879 में, कलकत्ता में अपने परिवार की वापसी के बाद, वह एकमात्र छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम श्रेणी में अंक प्राप्त किये।
वे दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य सहित विषयों के एक उत्साही पाठक थे। उनकी वेद, उपनिषद, भगवद् गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अनेक हिन्दू शास्त्रों में अधिक रूचि थी। नरेंद्र नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम में व खेलों में भाग लिया करते थे।
नरेंद्र ने जॉन स्टुअर्ट मिल इमैनुएल कांट, जोहान गोटलिब फिच, बारूक स्पिनोज़ा, जोर्ज डब्लू एच हेजेल, आर्थर स्कूपइन्हार , ऑगस्ट कॉम्टे, और चार्ल्स डार्विन, डेविड ह्यूम के कार्य का अध्ययन किया।बंगाली में अनुवाद स्पेंसर की किताब एजुकेशन का किया। नरेंद्र हर्बर्ट स्पेंसर के विकासवाद से काफी मोहित थे।पश्चिम दार्शनिकों के अध्यन के साथ ही इन्होंने संस्कृत ग्रंथों और बंगाली साहित्य को भी सीखा।विलियम हेस्टी ने लिखा था - "नरेंद्र वास्तव में एक जीनियस बालक है। मैंने काफी विस्तृत और बड़े इलाकों में यात्रा की है लेकिन उनकी जैसी प्रतिभावन वाला का एक भी बालक कहीं नहीं देखा यहाँ तक की जर्मन विश्वविद्यालयों के दार्शनिक छात्रों में भी ऐसा बालक नहीं हैं।इन्हें श्रुतिधर भी कहा गया है।
स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन
1.उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।
3.एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ
4.पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।
5.एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।
विवेकानंद जी संन्यासी कब बने?
स्वामी विवेकानंद 25 साल की उम्र में संन्यासी बन गए थे। संन्यास के बाद इनका नाम विवेकानंद रखा गया।
गुरु रामकृष्ण परमहंस विवेकानंद की मुलाकात 1881 कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में हुई थी। परमहंस ने उन्हें मंत्र दिया सारी मानवता में निहित ईश्वर की सचेतन आराधना ही सेवा है।
स्वामी विवेकानंद जब रामकृष्ण परमहंस से मिले तो उन्होंने सबसे अहम सवाल किया 'क्या आपने ईश्वर को देखा है?' इस पर परमहंस ने जवाब दिया- 'हां मैंने देखा है, मैं भगवान को उतना ही साफ देख रहा हूं, जितना कि तुम्हें देख सकता हूं, फर्क सिर्फ इतना है कि मैं उन्हें तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर सकता हूं'।
शिकागो धर्म संसद में जब स्वामी विवेकानंद ने 'अमेरिका के भाइयों और बहनों' कहकर भाषण शुरू किया तो दो मिनट तक सभागार में तालियां बजती रहीं। 11 सितंबर 1893 का यह दिन हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया।
स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन और 9 दिसंबर 1898 को गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की।
विवेकानंद के जन्म दिन यानी 12 जनवरी को भारत में हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। यह शुरुआत 1985 से हुई।
स्वामी विवेकानंद को दमा और शुगर की बीमारी थी। यह पता चलने पर उन्होंने कह दिया था- 'ये बीमारियां मुझे 40 साल भी पार नहीं करने देंगी।' उनकी यह भविष्यवाणी सच साबित हुई और उन्होंने 39 बरस में 4 जुलाई 1902 को बेलूर स्थित रामकृष्ण मठ में ध्यानमग्न अवस्था में ही महासमाधि धारण कर ली।
उनका अंतिम संस्कार बेलूर में गंगा तट पर किया गया। इसी तट के दूसरी ओर रामकृष्ण परमहंस का अंतिम संस्कार हुआ था।
प्रश्नोत्तरी
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