रविवार, 30 अगस्त 2020

स्वामी विवेकानंद जीवन परिचय ।Biography of Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानंद  जीवन परिचय । IBiography of  Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानन्द (जन्म 12 जनवरी,1863- मृत्यु 4 जुलाई,1902) वेदान्त विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनके बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। विवेकानन्द ने अमेरिका स्थित शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सन् 1893 में सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। विवेकानन्द ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की  जो आज भी अपना कार्य कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के कुशल शिष्य थे। उन्हें 2 मिनट का समय दिया गया था लेकिन उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमेरिकी बहनों एवं भाइयों" के साथ  संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया क्योंकि उन्हें अपना सा लगने लगा था। और इस वाक्य से भी प्रभावित हो गए थे।

जन्म                12 जनवरी 1863 कलकत्ता(कोलकाता)
मृत्यु                4 जुलाई 1902 (उम्र 39)बेलूर मठ, बंगाल रियासत, ब्रिटिश राज
                         ( पश्चिम बंगाल में)
धर्म                    हिन्दू
गुरु                   रामकृष्ण परमहंस
साहित्यिक कार्य   राज योग (पुस्तक)

राष्ट्रीयता             भारतीय

 

कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली कायस्थकुटुंब में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके थे। गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे उन्होंने सीखा कि सारे जीवो मे स्वयं परमात्मा का ही अस्तित्व हैं; इसलिए मानव जाति अथेअथ जो मनुष्य एक-दूसरे जरूरत मंदो की  करता है या सेवा भाव द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के प्रिय शिष्य थे।  गुरु रामकृष्ण की मृत्यु के पश्चात विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का प्रत्यक्ष ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म सभा1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए गए। विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन भी किया। विवेकानंद को भारत में  देशभक्त संन्यासी के रूप में माना जाता है और उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। महान व्यक्तित्व के थे स्वामीजी। आदर्श पुरुष भी थे। वे देश-विदेश में एक विशेष छाप छोड़ गए। उनके अवतरण दिवस(जन्मदिन) को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

जीवन परिचय 

प्रसिद्ध स्वामी विवेकानन्द यानी बचपन के नरेन्द्र नाथ दत् का जन्म 12 जनवरी सन्1863 को कलकत्ता में एक कायस्थकुटुंब में हुआ था। बचपन में घर का नाम वीरेश्वर रखा था,किन्तु उनका औपचारिक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे।  नरेंद्र के दादा दुर्गाचरण दत्ता,  संस्कृत और फारसी के विद्वान थे,उन्होंने अपने परिवार को 25 की उम्र में छोड़ दिया और संन्यास लेकर एक साधु बन गए। नरेन्द्रनाथ की माता श्री भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं वे पूजा -पाठ अधिक किया करती थी। इसलिए अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। नरेंद्र के पिता और उनकी माँ के धार्मिक प्रवती व तर्कसंगत रवैया ने उनकी सोच और व्यक्तित्व को आकार देने में सहायता मिली।नरेन्द्र बचपन से ही  अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के थे ही नटखट भी थे। अपने सहपाठी बच्चों के साथ वे खूब शरारत करते और मौका मिलने पर अपने अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे बहुत शरारती रहती थी।

शिक्षा

प्रारंभिक शिक्षा सन् 1871 में, आठ साल की उम्र में, नरेंद्रनाथ ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया । सन्1877 में उनका परिवार रायपुर चला गया। सन्1879 में, कलकत्ता में अपने परिवार की वापसी के बाद, वह एकमात्र छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम श्रेणी में अंक प्राप्त किये।

वे दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य सहित विषयों के एक उत्साही पाठक थे। उनकी वेद, उपनिषद, भगवद् गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अनेक हिन्दू शास्त्रों में अधिक रूचि थी। नरेंद्र नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम में व खेलों में भाग लिया करते थे।

नरेंद्र ने  जॉन स्टुअर्ट मिल इमैनुएल कांट, जोहान गोटलिब फिच, बारूक स्पिनोज़ा, जोर्ज डब्लू एच हेजेल, आर्थर स्कूपइन्हार , ऑगस्ट कॉम्टे,  और चार्ल्स डार्विन, डेविड ह्यूम के कार्य का अध्ययन किया।बंगाली में अनुवाद स्पेंसर की किताब एजुकेशन का  किया। नरेंद्र हर्बर्ट स्पेंसर के विकासवाद से काफी मोहित थे।पश्चिम दार्शनिकों के अध्यन के साथ ही इन्होंने संस्कृत ग्रंथों और बंगाली साहित्य को भी सीखा।विलियम हेस्टी  ने लिखा था - "नरेंद्र वास्तव में एक जीनियस बालक है। मैंने काफी विस्तृत और बड़े इलाकों में यात्रा की है लेकिन उनकी जैसी प्रतिभावन वाला का एक भी बालक कहीं नहीं देखा यहाँ तक की जर्मन विश्वविद्यालयों के दार्शनिक छात्रों में भी ऐसा बालक नहीं हैं।इन्हें श्रुतिधर भी कहा गया है।

स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन

1.उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।

2.हर आत्मा ईश्वर से जुड़ी है, करना ये है कि हम इसकी दिव्यता को पहचाने अपने आप को अंदर या बाहर से सुधारकर। कर्म, पूजा, अंतर मन या जीवन दर्शन इनमें से किसी एक या सब से ऐसा किया जा सकता है और फिर अपने आपको खोल दें। यही सभी धर्मो का सारांश है। मंदिर, परंपराएं , किताबें या पढ़ाई ये सब इससे कम महत्वपूर्ण है।
एक विचार लें और इसे ही अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें। इसी विचार के बारे में सोचे, सपना देखे और इसी विचार पर जिएं। आपके मस्तिष्क , दिमाग और रगों में यही एक विचार भर जाए। यही सफलता का रास्ता है। इसी तरह से बड़े बड़े आध्यात्मिक धर्म पुरुष बनते हैं।

3.एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ

4.पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।

5.एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।

विवेकानंद जी संन्यासी कब बने?

स्वामी विवेकानंद 25 साल की उम्र में  संन्यासी बन गए थे। संन्यास के बाद इनका नाम विवेकानंद रखा गया।

गुरु रामकृष्ण परमहंस विवेकानंद की मुलाकात 1881 कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में हुई थी। परमहंस ने उन्हें मंत्र दिया सारी मानवता में निहित ईश्वर की सचेतन आराधना ही सेवा है।

 स्वामी विवेकानंद जब रामकृष्ण परमहंस से मिले तो उन्होंने सबसे अहम सवाल किया 'क्या आपने ईश्वर को देखा है?' इस पर परमहंस ने जवाब दिया- 'हां मैंने देखा है, मैं भगवान को उतना ही साफ देख रहा हूं, जितना कि तुम्हें देख सकता हूं, फर्क सिर्फ इतना है कि मैं उन्हें तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर सकता हूं'।

 शिकागो धर्म संसद में जब स्वामी विवेकानंद ने 'अमेरिका के भाइयों और बहनों' कहकर भाषण शुरू किया तो दो मिनट तक सभागार में तालियां बजती रहीं। 11 सितंबर 1893 का यह दिन हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया।

स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन और 9 दिसंबर 1898 को गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की।

 विवेकानंद के जन्म दिन यानी 12 जनवरी को भारत में हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। यह शुरुआत 1985 से हुई।

स्वामी विवेकानंद को दमा और शुगर की बीमारी थी। यह पता चलने पर उन्होंने कह दिया था- 'ये बीमारियां मुझे 40 साल भी पार नहीं करने देंगी।' उनकी यह भविष्यवाणी सच साबित हुई और उन्होंने 39 बरस में 4 जुलाई 1902 को बेलूर स्थित रामकृष्ण मठ में ध्यानमग्न अवस्था में ही महासमाधि धारण कर ली।

उनका अंतिम संस्कार बेलूर में गंगा तट पर किया गया। इसी तट के दूसरी ओर रामकृष्ण परमहंस का अंतिम संस्कार हुआ था।

प्रश्नोत्तरी

1. स्वामी विवेकानंद की पत्नी का नाम क्या था?
उत्तर उनकी कोई पत्नी नहीं थी नवंबर 1895 में, उनकी मुलाकात मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल से एक     आयरिश               महिला से हुई जो सिस्टर निवेदिता बन गईं।  निवेदिता उनके विचारों से प्रभावित थी।

2. स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर   4 जुलाई 1902 (उम्र 39)

3.स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण कैसा था?
उत्तर अमरीकी भाइयो और बहनो प्रभावित करने वाला   उनके मन को छूने वाला।

4. विवेकानंद के गुरु का नाम क्या था?
उत्तर रामकृष्ण परमहंस

5. स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम क्या था
उत्तर नरेंद्रनाथ दत्त

6. स्वामी विवेकानंद कौन थे?
उत्तर भारतीय आध्यात्मिक गुरु

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