सही बात है की सियासत में कोई किसी का सगा नहीं होता। सत्ता पाने के लिए अपने सगे और खून के रिश्ते को भी ठुकरा देते हैं। ऐसे लोग सत्ता पाकर शक्तिशाली बनना चाहते हैं। सत्ता से एक ऐसी शक्ति प्राप्त हो जाती है जिन्हें समाज में ऊंचा दर्जा धन दौलत सारी चीजें प्राप्त होती है। कुर्सी के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं। यहां पर कुर्सी की कीमत जान से भी ज्यादा होती है। यदि अगर ऐसा नहीं होता तो सत्ता के लिए बेटा अपने बाप को भतीजा अपने चाचा को पत्नी अपने पति को दगा नहीं देती। साधारण शब्दों में कहें तो सत्ता के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। सिटी आफ ड्रीम्स ऐसी ही सियासत पर बनी एक रोमांचक वेब सीरीज है।
Director: Nagesh Kukunoor
Cast: Atul Kulkarni, Priya Bapat, Eijaz Khan,
Sachin Pilgaonkar, Ankur Rathee, Sushant Singh
Streaming on: Disney+ Hotstar
Release date: 30th July 2021
मुनव्वर राणा का एक शेर है, 'बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है, बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है.' डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हुई web series सिटी ऑफ ड्रीम्स सीजन 2 के एक प्रमुख किरदार अमेय राव गायकवाड़ यानी साहिब (अतुल कुलकर्णी) पर ये शेर बिल्कुल सटीक बैठता है. एक वक्त था जब वो सूबे का सबसे शक्तिशाली राजनेता था, मुख्यमंत्री था, उसके एक इशारे पर हर तरफ खलबली मच जाती थी. लेकिन एक हादसे के बाद वो शरीर से लाचार क्या हुआ राजनीति से भी बाहर कर दिया गया. उसकी अपनी ही बेटी उसे बंधक बनाकर और अपने भाई की हत्या कराकर सत्ता का सुख भोग रही है. एक बूढ़े शेर की तरह साहिब छटपटाता है।
दांव-पेंच चलता है, लेकिन हर बार हार जाता है. इस वेब series में वो सबकुछ है, जो आप वर्तमान समय में देश की राजनीति में देख रहे हैं या पहले देख चुके हैं।
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राजनीति में सत्ता के लिए रिश्तों का खून
city of dreams season 2 की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां first season की खत्म हुई थी. अपने भाई आशीष गायकवाड़ (सिद्धार्थ चंदेकर) की हत्या और पिता अमेय राव गायकवाड़ उर्फ साहिब (अतुल कुलकर्णी) के लकवाग्रस्त होने के बाद पूर्णिमा गायकवाड़ (प्रिया बापट) सूबे की CM बन चुकी है. वो अपने पिता के खास और पूर्व सीएम जगदीश गुरव (सचिन पिलगांवकर) और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट से नेता बने वसीम खान (एजाज खान) को अपनी तरफ मिलाकर सत्ता का आनंद ले रही है. इधर, साहिब का स्वास्थ्य धीरे-धीरे ठीक हो रहा है. वो अपने बेटे की हत्या और अपनी सत्ता छीनने से निराश होकर पूर्णिमा से बदला लेना चाहता है. जनता के मध्य पिता के आशीर्वाद से सरकार चलाने का नाटक करने वाली पूर्णिमा को पता है कि शेर को बहुत ज्यादा दिन मांद में बंद नहीं रखा जा सकता, इसलिए वो सावधान है.
सत्ता के 'चरित्र' का सियासी संतुलन
पूर्णिमा अपनी सरकार को बचाए रखने के लिए भले ही सियासी दांव-पेंच का प्रयोग करती है, लेकिन वो राजनीति में कुछ नया करना चाहती है. उसके इरादे अपने बाप से बहुत ज्यादा शरीफ नजर आते हैं. जैसे एक जगह वो अपने सलाहकार से कहती है कि वो चुनाव में black money के इस्तेमाल के पक्ष में नहीं है. उसे अपने बाप की तरह लोगों से लूटकर पैसे नहीं कमाना है. कमीशन के तौर पर जो पैसे उसे मिल जाते हैं, उतना ही उसके लिए ठीक है।
लेकिन सलाहकार के समझाने पर वो अपने पिता के रखे कालेधन को चुनाव में प्रयोग करने के लिए राजी हो जाती है. हालांकि, राजनीति में सबकुछ साफ-सुथरा नहीं होता है. पूर्णिमा गायकवाड़ को भी एक ऐसी राजनेता के रूप में दिखाया गया है जो सत्ता के लिए हत्या कराती है. अपनों का खून बहाती है. समलैंगिंक रिश्ते बनाती है. यहां तक कि सीक्रेट शादी तक कर चुकी है.
सिटी ऑफ ड्रीम्स 2 वेब सीरीज में वर्तमान समय के किरदार
इतिहास और अतीत के बिना न तो वर्तमान खड़ा रह सकता है और न ही इस पर भविष्य रूपी इमारत खड़ी हो सकती.
इस सत्य से अनजान पूर्णिमा गायकवाड़ अपने धुन में सरकार चला रही होती है, लेकिन उसका पिता लगातार बाजी पलटने के मौके तलाशता रहता है. इसके लिए कभी वो विपक्ष को उकसाता है, तो कभी पैसों के दमपर बवाल कराता है. यहां तक कि बेटी की सरकार पर सवाल उठे, इसलिए शहर में दंगे भी करवाता है. लेकिन बेटी भी पिता से कम चालबाज नहीं है. वो वसीम खान के जरिए उनके हर चाल को नाकाम कर देती है. वैसे वसीम खान जैसे कुछ किरदारों को देखकर असल जिंदगी के कुछ लोग याद आते हैं. जैसे महाराष्ट्र के पूर्व एपीआई सचिन वझे, जो पुलिस अफसर से शिवसेना में शामिल हुए और फिर ठाकरे सरकार बनते ही महकमे में वापस आ गए थे. फिलहाल सस्पेंड चल रहे हैं। राजनीति में ये सब चलते रहता है।
सिटी ऑफ ड्रीम्स 2 वेब सीरीज देखनी चाहिए या नहीं?
web series city of dreams season 2 के director नागेश कुकुनूर ने कसा हुआ निर्देशन किया है. एक साथ कई दिशाओं में चल रही कहानी को पिरोए रखना और उसे ट्रैक पर बनाए रखना बहुत मुश्किल काम होता है।
नागेश के साथ भी यही दिक्कत दिखती है. कहानी के कई पहलुओं को स्थापित करने की कोशिश में, मुख्य कथानक पर से उनका ध्यान हट जाता है. कुछ चीजें अनावश्यक रूप से जुड़ी दिखाई देती हैं, तो कुछ पहले ही समझ में आ जाती हैं. हालांकि, रोचक ट्विस्ट एंड टर्न है, जो कि एक पॉलिटिकल थ्रिलर web series से अपेक्षित है. अतुल कुलकर्णी, प्रिया बापट, एजाज खान, सचिन पिलगांवकर, सुशांत सिंह और फ्लोरा सैनी सहित सभी कलाकारों ने शानदार काम किया है. पूर्णिमा के character में प्रिया और साहिब के character में अतुल सीरीज खत्म होने के बाद भी जेहन में बने रहते हैं. background score और music आकर्षक हैं. बेहतरीन dialogue के साथ artists का great body language देखने को मिलता है. कुल मिलाकर, इस web series को जरूर देखा जाना चाहिए.
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