डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन (5 सितंबर 1888-17 अप्रैल 1975 ) स्वतंत्र भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति (Vice President) एवं दूसरे राष्ट्रपति(President) के रूप में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। भारतीय संस्कृति के प्रख्यात शिक्षाविद , महान दार्शनिक एवं आस्थावान विचारक थे। उनके इन विशिष्ट गुणों के कारण भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से उन्हें सम्मानित किया गया था। उनकी याद में प्रतिवर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। बीसवीं सदी के विद्वानों में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का नाम फिर से स्थान पर है वह हिंदुत्व को पूरे देश में फैलाना चाहते थे उनके अनुसार शिक्षकों का दिमाग कुशाग्र बुद्धि का होना चाहिए क्योंकि एक शिक्षक ही उन्नत राष्ट्र को बनाने में सहयोग प्रदान करता है।
नाम डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन
जन्म 5 सितंबर 1888
जन्म स्थान तिरूमनी गांव मद्रास
मृत्यु 17 अप्रैल 1975 (86)
धर्म हिंदू
माता सिताम्मा
पिता सर्वपल्ली वीरास्वामी
विवाह सिवाकमु (1904)
बच्चे 5 पुत्री, 1 बेटा
व्यवसाय राजनीतिज्ञ , दार्शनिक , शिक्षाविद , विचारक
जीवन परिचय (Life introduction)
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ( Dr.Sarvepalli Radhakrishnan )का जन्म तमिलनाडु के तिरुत्तनी नामक ग्राम में हुआ था जो वर्तमान में मद्रास है । इनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में 5 सितंबर 1988 को हुआ था इनकी जन्मभूमि पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में प्रसिद्ध रही है। इनके पूर्वज सर्वपल्ली नाम के ग्राम में निवास करते थे इसलिए उनके परिजनों ने अपने नाम की पुरवा सर्वपल्ली धारण करने लगे थे।
विद्यार्थी जीवन (Student life)
राधाकृष्णन (Radhakrishnan)जी का बाल जीवन तिरुत्तनी एवं तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों पर व्यतीत किया। बचपन के प्रथम 8 वर्ष उन्होंने तिरुत्तनी में ही रहे। क्योंकि उनके पिता पुराने विचारों के थे और उनमें धार्मिक भावनाएँ भी थीं, इसके बावजूद उन्होंने राधाकृष्णन को क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरूपति में 1896-1900के मध्य शिक्षण के लिये भेजा। फिर अगले 4 वर्ष की उनकी शिक्षा वेल्लूर में हुई। इसके बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास में शिक्षा प्राप्त की। वह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के एवं मेधावी थे।
12 वर्षों के अध्ययन काल में राधाकृष्णन ने बाइबिल के महत्त्वपूर्ण अंश भी याद कर लिये। इसके लिये उन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान प्रदान किया गया। इस उम्र में उन्होंने स्वामी विवेकानन्द और अन्य महान विचारकों का अध्ययन किया। उन्होंने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की और उन्हें छात्रवृत्ति भी प्राप्त हुई। इसके बाद उन्होंने 1904 में कला संकाय परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उन्हें मनोविज्ञान, गणित और इतिहास विषय में विशेष योग्यता की टिप्पणी भी अधिक प्राप्तांकों के कारण मिली। इसके अलावा क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास ने उन्हें छात्रवृत्ति भी दी। दर्शनशास्त्र में एम. ए. के पश्चात् 1918 में वे मैसुर महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए। फिर उसी कॉलेज में वे प्राध्यापक भी रहे। डॉ. राधाकृष्णन ने अपने भाषणों और लेखों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया। सारे विश्व में उनके लेखों की अधिक प्रशंसा की गयी।
वैवाहिक जीवन (Married life)
राधाकृष्ण जी का विवाह 16 वर्ष की आयु में दूर की बहन 'सिवाकामू' के साथ संपन्न किया था। उस समय मद्रास में ब्राह्मण परिवारों में कम उम्र में शादी होती थी इसी बीच राधाकृष्ण जी का विवाह हुआ था। उस समय उनकी पत्नी की आयु मात्र 10 वर्ष की थी। 3 वर्ष पश्चात उन्होंने अपनी पत्नी के साथ जीवन व्यतीत करना प्रारंभ किया। उनकी पत्नी ने प्रारंभिक शिक्षा नहीं की थी लेकिन तेलुगु भाषा में अच्छी पकड़ थी। उन्हें अंग्रेजी भाषा पढ़ना आती थी। उनको पहली पुत्री 1908 में प्राप्त हुई।
सन्1908 में उन्होंने कला स्नातक की उपाधि प्रथम श्रेणी में अर्जित की एवं दर्शन शास्त्र में विशिष्ट योग्यता प्राप्त की। उनकी शादी के 6 वर्ष बाद ही 1909 में उन्होंने कला में स्नातकोत्तर परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली। इनका विषय दर्शन शास्त्र ही रहा। उच्च अध्ययन के लिए वह अपनी निजी खर्चे के लिये बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का कार्य किया करते थे। 1908 में उन्होंने एम .ए . की उपाधि प्राप्त करने के लिये एक शोध लेख भी लिखा,उस समय उनकी मात्र आयु 20 वर्ष की थी। उन्हें शास्त्रों के प्रति उनकी जिज्ञासा बढ़ी। जल्दी ही उन्होंने वेदों और उपनिषदों का भी गहन अध्ययन कर लिया। इसके उन्होंने हिन्दी और संस्कृत भाषा का भी अभिरुचि पूर्ण अध्ययन किया।
भारत रत्न सम्मान (Bharat Ratna Award)
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा 1930 में सर की उपाधि प्रदान की गई थी लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उनके लिए केवल सर्वपल्ली ही रह गई। जब सर्वपल्ली स्वतंत्र भारत के उपराष्ट्रपति बने उस समय डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने सन् 1954 में उन्हें उनकी महानतम दार्शनिक व शैक्षिक उपलब्धियों के लिये देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था ।
शिक्षक दिवस (Teacher's day)
स्वतंत्र भारत की अद्वितीय राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन पूरे भारतवर्ष में प्रतिवर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस (teachers day)के रूप में मनाया जाता है । एक बार की बात है कुछ विद्यार्थी डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन मनाना चाहते थे लेकिन सर्वपल्ली राधाकृष्णन कहां की मेरा जन्म शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाएगा तो मैं गर्व महसूस करूंगा l सन 1962 से डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिन शिक्षक दिवस (Teacher's day)के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन शिक्षक पढा़ने का कार्य नहीं करते बल्कि स्कूल कॉलेज के छात्र-छात्राएं अपने जूनियर छात्रों को पढ़ाने का कार्य करते हैं और वह एक शिक्षक होने की भूमिका निभाने का कार्य करते हैं इस दिन छात्र छात्राएं शिक्षकों के सम्मान में बुके, फूल , पेन शिक्षकों को भेंट स्वरूप प्रदान करते हैं इस दिन डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की फोटो की पूजा की जाती है एवं उनका जन्मदिन सेलिब्रेट किया जाता है यह विद्यार्थी जीवन का महत्वपूर्ण दिन होता है। शिक्षक दिवस के दिन डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन पर भाषण (teacher day speech ) , गायन ,कविता पाठ का स्कूल में कार्यक्रम व कॉलेजों में कार्यक्रम किए जाते हैं और इसमें छात्र-छात्राएं भाग लेने का कार्य करते हैं । यहं छात्र जीवन का एक इंटरेस्टिंग मूवमेंट होता है।
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु(Dr. Sarvepalli Radhakrishnan death)
डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्ण राधाकृष्णन का निधन लंबी बीमारी के चलते सन् 17 अप्रैल 1975 को हुआ था। शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान महत्वपूर्ण होने से यह हमारे लिए सदा स्मरणीय रहेंगे। इसलिए इनका जन्म प्रतिवर्ष 5 सितंबर को पूरे भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। शिक्षक दिवस पर शिक्षक के विशिष्ट कार्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर भारत के प्रधानमंत्री द्वारा शिक्षक दिवस पर पुरस्कार दिया जाता है। सन 1975 में राधा कृष्ण जी के मरणोपरांत अमेरिकी सरकार नेटेम्पलटन पुरस्कार से नवाजा गया था जो कि हां पुरस्कार धर्म के उत्थान के क्षेत्र में दिया जाता है वे इस सम्मान को प्राप्त करने वाले गैर ईसाई हिंदू व्यक्ति थे।
प्रश्नोत्तरी
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